निर्धनता गयी न मन से
निर्धनता गयी न मन से


वक़्त ने करवट ली
जमाना बदला ऐसा
हमने दूर-दूर तक खोजा बहुत
ग़रीबी कहीं दिखी नहीं !
ग़रीबी की रोना रोती है सिर्फ दुनिया
बात करके देखो अकड़ सबमें है अब
हाँ ग़रीबी आज भी जो है बची
मन की फ़ितरत है सब
दिल का लीचड़पना है।
इस रोग की मात्र एक ही दवा है
खुलकर योग साधे दुनिया
खाये भोर की हवा !
योग से तन मज़बूत बनकर
मन जागृति होगा
तन-मन से किया कार्य
पल में पूरा होगा !
दिल से किया काम
मन को तसल्ली मिलेगी
तुम फिर ग़रीब कहाँ
तुझको दुनिया दिल का राजा कहेगी !