“ निंदक नियरे राखिए ......”
“ निंदक नियरे राखिए ......”


खुलके हमारी खामियों को कोई कहता है !
हमारी गलतियों को कोई सामने लाता है !!
हम बौखला जातें हैं लगता है कोई नया दुश्मन निकल आया है ,
उसकी तस्वीर भी बुरी लगने लगती है !
उससे किनारा हम कर लेते हैं !
नसीहत ,आदर्श और सुझाव बचपन में बच्चे भी मान लेते हैं !
पर बड़े होकर उनके भी पर निकल पड़ते हैं !!
माँ -बाप की भी बातों को बुरा मान लेते हैं !
लेख ,आलेख , व्यंग और कविताओं में हमें सारी बातें मिल जातीं हैं !
पर दुर्भा
ग्य है हमलोगों का ये बातें सब की सब सर के ऊपर से गुजर जातीं हैं !!
अपनी प्रतिक्रियाओं के माध्यम से सब कोई ना कोई कहता रहता है !
पर सैकड़ों में एक दो सकारात्मक लोगों के ही पल्ले यह पड़ता है !!
ब्लॉक और डिलीट तो सोशल मीडिया में छा गए हैं !
अब तो अपने बच्चों और सगे -संबंधियों में भी ये रोग लग गए हैं !
!कविताएं कबीर की तो सब दुहराते हैं ---" निंदक नियरे राखिए ...
"पर अपनाने से इसे लोग सदा कतराते हैं !!