नील गगन
नील गगन
कौन हूँ मैं उद्देश्य है क्या
क्यों पाया यह नश्वर तन
क्यों होता है विचलित मन
कब पार लगे यह नील गगन।
उकताये जग माया से मन
होना चाहे उन्मुक्त पवन
तुच्छ लगे तब हर बंधन
विचरे उड़ उड़ यह नील गगन।
बह जाऊँ लहरों के संग
अस्तित्वहीन होवे जीवन
विस्तृत सागर से मधुर मिलन
करे जहाँ यह नील गगन।
जब होवे मन का मंथन
लगे व्यर्थ जग के साधन
कर दूं सब कुछ परित्याग अभी
वास करूँ उस नील गगन।