नई पीढ़ी की के मुसाफ़िर
नई पीढ़ी की के मुसाफ़िर
नन्हें आँखों में कुछ सपना था,
अंजाने रास्तों में कोई ना अपना था,
निकले थे अपनी किस्मत को चमकाने,
मगर कोसते रह गये ख़ुद को बेगाने,
चल तो पड़े थे शान से
चंद सिक्कों के बल पर
की जीत लेंगे दुनिया
कर लेंगे हासिल,
वक़्त के साथ
बन जायेंगे क़ाबिल ,
हो कर सवार
सपनों की साईकल पर
लादे हुऐ बास्ते
अपने कंधों पर,
छोटे से थे दिखने में
हौसले बड़े थे उनके विचारों में
बेपरवाह थे
बेख़बर थे
नई पीढ़ी की के मुसाफ़िर ।।