निगोड़ी पायल
निगोड़ी पायल
मेरे मन को समझे है,
जुबां से बोला ना कुछ,
ये निगोडी पायल ...
घुंघरुओं में बोल पड़ी....
दबे-दबे से पांव चली ,
मन ही मन मुस्कुराती ,
हौले से कानों में कुछ कहना था,
लेकिन ये निगोडी पायल ...
घुंघरुओं में छन्न से बोली
पायल की रूनझुन,
भंवरों की गुनगुन,
खयालों मे खोई,
कुछ दबे- दबे से एहसास मेरे,
इस निगोडी पायल के...
घुंघरूओं में बज उठी
ओ निगोडी पायल,
अब ना यूं शोर कर,
ना किल्लोल कोई,
रात्रि का प्रहर है,
सो रहा शहर है,
लेकिन निगोडी पायल,
घुंघरुओं में जाग पड़ी.....!