मानवता सिसक रही
मानवता सिसक रही
सिसक रही मानवता,
कोकिल गीत कैसे गाएँ,
मृत्यु सामने है खडी,
लोरियां सुना मन बहलाए ।।
एक कोरोना के चलते,
समूचा विश्व हो गया तंग,
जीवन मे लगा कर्फ्यू
बाजार-हाट सब बदरंग ।।
भीषणता बरसाए यहाँ,
छन्द रस अब आए कहाँ,
सिसक रही है मानवता,
कोकिल गीत गाएँ कहां।।
पुरखो के सद - वचन में जाएं
सादगी का जीवन
अपनाएं,
आओ जीवन शैली बदलें
प्रकृति की शरण में आए!