निगाहों में बेताबी
निगाहों में बेताबी
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यूँ तो है सब कुछ
मगर निगाहों में बेताबी
सी नजर आती है
भगदड़ सी इस भीड़ में
तन्हाई सी सताती है।
दरिन्दों की किस्मत
दुनियां इनकी मुट्ठी में
समाए सी जाती है
जमीं खिसकती वहीं, जहां
इंसानियत पांव जमाती है।
हुँकार भी अताताइयों की
मानवता को हिला जाती है
उड़ने को तो बेबस है
बस घायल ईमानदारी जो
पंख कटे हुए पाती है।
ऑनर किलिंग हो मसला
या भ्रूण हत्या की जाती है
ढ़ोंग है कि आगे बढ़े हैं हम
ये हवा तो हमें
पीछे को लिए जाती हैं।