निभाते
निभाते
प्यार है पर विश्वास नहीं
दर्द है पर हमदर्द नहीं
इश्क ए आफताब पे लगाते ग्रहण
हमसफ़र यों निभाते रस्म हैं
करते एक दूजे से रार जोरदार
जताते तुम बिन मैं अधूरा यार
कोई तो इन्हें बता दें इश्क में
एक मंजिल के अलग राही होते नहीं है
हर मोड पर प्यार की राहें
एक दूजे संग हैं बंधी होती
मोड़ आने से राहीं बदलते नहीं
थामैं हाथ साथी आगे हैं बढ़ते।