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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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नेकी करना भूल हुई

नेकी करना भूल हुई

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हमदर्दी करना भूल हुई

नेकी मेरी चकनाचूर हुई

भलाई की ठोकर से गिरे,

अच्छाई करना शूल हुई


हृदय के मेरे जख्मों पे,

नेकी बहुत ही नासूर हुई

हमदर्दी करना भूल हुई

नेकी मेरी चकनाचूर हुई


ख़्वाब शीशे से टूट गए,

नेकी मेरी मजबूर हुई

अपनों के पत्थरों से,

वो बहुत चूर-चूर हुई


हमदर्दी करना भूल हुई

नेकी मेरी चकनाचूर हुई

उन्हें बुरी लगी मेरी नेकी,

जिनके हृदय में थी शेखी,


नेकी करना मेरी शूल हुई

फूल की महफ़िल में,

नेकी मेरी बबूल हुई

हमदर्दी करना भूल हुई


नेकी मेरी चकनाचूर हुई

फिर भी साखी तू मत रो,

आंखें उनकी ही लाल हुई

जिनके आंखों में,


ज़माने की गंदगी हुई

नेकी तेरी उसे कबुल हुई,

जिसके सीने में साखी,

अच्छाई की रोशनी हुई।


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