नदियों की तृष्णा
नदियों की तृष्णा
नदियाँ हमेशा बहती हैं कलकल,
ज़ब भी मिले समंदर से पल पल!
किसको यहाँ किसकी तृष्णा है?
कौन सी नदी कितनी प्यासी है !
कहाँ कितनी किसे गहरी उदासी है,
अब मन की व्यथा अच्छी खासी है!
कहाँ तक किसको बहते जाना है !
किसका पता कि कहाँ ठिकाना है!
किसको किसकी कितनी आस है,
कहीं पतझड़ और कहीं मधुमास है!
कहीं घना अंधेरा तो कहीं उजास है ,
कहीं अति हर्ष, कहीं घोर विषाद है!
अनकही अलिखित ......अनसुनी ,
सबकी अलग- अलग कहानियां है ,
आंतरिक कोलाहल भरी बाह्य चुप्पी,
सबकी अपनी -अपनी रवानियां है!
इन बातों से अनभिज्ञ ये ज़माना है ,
पहाड़ों से होके अविरल बहते जाना है!
अपने गंतव्य तक पहुॅंचने वाली नदियाॅं,
अपनी नमी गीली रेत पर छोड़ जातीं हैं !!