खामखा बैठे रहे
खामखा बैठे रहे
थक कर बैठ गया वह अब यूं ही खामखा,
गमों को कर रहा बयां, यूं ही वो खामखा।
मंजिलें, अकसर रास्तों पर ही जा मिलती हैं,
रास्तों को दे रहा बद्दुआ, यूं ही वह खामखा।
कदम, कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे,
उसे अपना ख्याल कहाँ रहा, यूं ही खामखा।
मंजिल बुला रहे थी उसे, चल अपने पैर उठा,
वो बस जख्म रहा देखता, यूं ही तुझे खामखा।
सफर शुरू होते ही, कैसे थकने लगा वो हारकर ,
नजरें बिछाए है कोई बैठा इंतजार में खामखा।