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Ajay Singla

Tragedy

3  

Ajay Singla

Tragedy

नदिया

नदिया

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पहाड़ों को थी चीरती और 

कल कल छल छल बहती थी मैं 

लहलहाते खेतों को फिर 

सींचती ही रहती थी मैं।


फिर एक बदलाव आया 

बाँध बने, बहाव टूटा 

कूड़ा करकट तक बहाया 

रेत को फिर सबने लूटा।


पहले पहले तट पर मेरे 

दूर दूर तक पेड़ थे दीखते 

अब जब भी मैं सो के उठती 

रोज नए प्लाट बिकते।


पानी था जब शुद्ध मेरा 

कहते थे अमृत यही है 

दुर्गन्ध अब इस में से आये 

पी भी न सकता कोई है। 


घर का कूड़ा, फैक्ट्री का 

गन्दा पानी तुम न डालो 

समझो नदी या माँ मुझे तुम 

बीमार हूँ मुझ को संभालो।


लगता है मरने लगी हूँ 

मुझ को थोड़ी जान दे दो 

तेरे लिए ही जी रही थी 

मुझ को थोड़ा मान दे दो।




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