नदी और नारी
नदी और नारी
वह नारी है, न संहारी है
उसने बस्ती नहीं उजाड़ी है।
सरिता जो शीतलता दे जाती
वैतरणी से पार लगाती,
होती मानव कल्याणी है।
जिसने बस्ती पाली-पोसी,
प्यासे को पानी दे जाती है।
लहराती है, बलखाती है,
अल्हड़ मस्त मगन मुस्काती है।
डगरों में अवरोधक डाले हमने,
उसको भड़काया उकसाया है,
तब उसने उत्पात मचाया है।
क्रिया की होती प्रतिक्रिया,
न्यूटन ने यही बताया है।
जब बोये काँटे हमने डगरों में,
हमको सबक सिखाया है।
गर नहीं रुके अब भी हम,
पड़ना हम पर ही भारी है
समझें लहरी लहरों से भी बढ़
कूलंकषा सी हाहाकारी है।।