नैसर्गिक प्यार
नैसर्गिक प्यार
मानव औपचारिकता निभाता है,
मन के भावों का जब करता इज़हार।
लेकिन बदले हुए आज के इस दौर में ,
केवल पशु ही दिखाते- हैं सच्चा प्यार।
इंसान केवल तब तक ही बस सच्चा है,
जब तक वह सरल हृदय का बच्चा है।
फिर तो जैसे-जैसे है उसकी उम्र बढ़े,
सीखता चालाकी जब दुनियादारी पढ़े।
नैसर्गिक प्यार केवल पशु-पक्षियों में पाते हैं,
फिर क्यों करके सब नर इतना ही इतराते हैं?
"बड़े भाग मानुष तन पावा"कह कर न जाने।
प्रकृति के नियम भी आज केवल पशु ही माने।
चौदह मई के प्रेरक चित्र से परिलक्षित है यही विचार,
घरेलू श्वान प्राकृतिक अन्य पर लुटा रहा है अपना प्यार।
मानव उत्कृष्ट कृति है ईश्वर की रखिए उत्कृष्ट ही संस्कार,
विपदाओं से हम मिलकर निपटें- प्यारा बनाएं यह संसार।
