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नारी

नारी

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हमेशा नारी ही क्यूँ छोड़े

अपना घर, अपना संसार

अपना प्यार, अपना परिवार...


हमेशा नारी ही क्यूँ सहे

ताने, गुस्सा

मान, अपमान...


हमेशा नारी ही क्यूँ सुने

सभी की बात, जज्बात

सभी के हास, परिहास...


हमेशा नारी ही क्यूँ त्यागे

अपने सपने, अपनी खुशी

अपना वजूद, अपनी उम्मीद...


नारी के लिये ही क्यूँ है

मान-मर्यादा

कायदे-कानून

रस्म -रीत

शर्म-हया...


नारी के पैर में ही

क्यूँ बेड़ियाँ पड़ी

नारी क्यूँ नहीं हो सकती

अकेली खड़ी...


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