नारी
नारी
जिदंगी के सवालो मे उलझी
हर एक नारी है
जवाब ढूंढती रहती उसकी
हर एक परछाई है
कितने करम करती रहती
फिर भी कहीं गुम है
हर सुख दुख मे ऑखे उसकी
होती क्यूं नम है
बांटती रहती खुशी अपनी
खुद के पास गम है
तू ही दर्द का हल होकर भी
तू दिखती कहीं कम है
पंख होकर भूल गयी कैसे
पास उडने का हुनर है
फैलाओ पंख आसमान मे
बताओ जग को तू निडर है।