नारी से दुनिया सारी
नारी से दुनिया सारी
अंधेरे में तू सूरज की एक किरण सी है,
हे नारी, तू इस युग में शीतल पवन सी है !
गर्मी में सुकून देने वाली एक ठंडी फुहार है,
सभी के आँगन में ख़ुशियाँ लाए ऐसी बहार है !
मुश्किल में पर्वत के समान सब सह लेती है,
पराये को भी अपना कह लेती है !
अपनों के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है,
खुद दुःखी रहकर भी अपनों की झोली खुशियों से भर देती है !
पर आज भी तेरे अस्तित्व पर लोग सवाल उठाते हैं,
तुझे मिट्टी की समझ तुझ पर हुक्म चलाते हैं !
तुझे प्यार से अपनों को जीतना है,
और इन कुप्रथाओं को आगे नहीं सींचना है !
कर जा ऐसा जिससे नारी जाति का उत्थान हो,
जन-जन के हृदय में नारी के लिए सम्मान हो !
कोई ना तुझे अब अबला और कमजोर कह पाए ,
तू शक्ति बन समस्त भूमंडल पर राज कर जाए !
कभी पुष्प के समान कोमल तो कभी काँटों जितनी कठोर है नारी,
अपनों की हिफाज़त करने में सबसे अव्वल है नारी !
दुःखों को अपने में समेट खुशियाँ लाती नारी,
नारी से ही है ये दुनिया सारी !