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नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

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आजाद होकर भी मैं आज़ाद सी नहीं रह गई,

और कुछ अनिष्ट होने के डर से चुपचाप घर में ही रह गई !


आज मैं अकेले कहीं जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हूँ,

और घर पर ही मौत से बदतर जीवन जिए जा रही हूँ !


बेटी होने का गम आज मुझे सता रहा है,

और अपनी सुरक्षा का ख्याल मुझे पल -पल आ रहा है !


ये हैवानों की दुनिया मेरा दर्द क्या समझ पायेगी,

कल फिर किसी की आबरू से खेलकर खुशियाँ मनाएगी !


आज मैं बहुत बेबस और लाचार सी हो गई हूँ,

और ना जाने इस भीड़ में तन्हा सी कहीं खो गई हूँ !


अब तो किसी से बात करने का ख्याल भी डरावना लगने लगा है,

और भला आदमी भी जानवर के रूप में अवतरित दिखने लगा है !


अच्छा होता माँ तू मुझे गर्भ में ही मार देती,

और अपनी बेटी को इस भयावह दुनिया से तार देती !


नहीं लेना जन्म मुझे ऐसे दरिंदों वाले संसार में,

जहाँ पवित्रता नहीं बची अब किसी के विचार में !


गाँधी और नेहरु के इस पावन देश को ये क्या हो गया,

ये देश मलिनता की चादर ओढ़ मलिन हो गया !


अब हमें महिलाओ के उत्थान के लिये कोई ठोस कदम उठाना होगा ,

और भारत माता को उसका खोया हुआ सम्मान वापस दिलवाना होगा !



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