नारी महाकाली भी हैं
नारी महाकाली भी हैं
बहुत उदास है,
दिल मेरा रो रहा है,
क्या हो रहा हैं,
ये समाज दिशाहीन
क्यो हो रहा हैं,
नारी भी है एक जीव,
हृदय उसका भी,
प्रेम,करुणा,ममत्व से भरा,
देती है सहानुभूति,
हर पीड़ित मानवता को,
पर दुःख क्या हमारा
ये भी तुमने जाना है,
हमे तो हे नर तुमने
बस देह ही माना हैं,
बस बात देह से प्रारंभ,
देह पर समाप्त होती हैं,
बस एक देह समझते हो,
न माँ, न बेटी,न बहन
नज़र आती हैं,
बस देह को ही तार तार
कर जाते हो,
क्या टूटता हैं तुम क्या जानो,
उसका मन, विश्वास, परिवार सब,
इतनी क्रूरता, वासना से बाज अब आओ,
नारी यदि सरस्वती हैं, तो काली भी हैं,
इसने करा वही जो करने की ठानी हैं,
अरे,दुष्टो,इतना क्रूर तो रावण भी न था,
अंत श्रीराम के हाथों था,
तेरी दुष्टता तो चरम सीमा पर है,
महाकाली का अवतरण भी इसी धरा पर हैं।