नारी होकर नारी की हत्या
नारी होकर नारी की हत्या
नन्ही गुड़िया ने आजकल पिता जी का गुस्सा कुछ कम देखा
बहुत समय बाद उन्हें प्रसन्न एवं मस्त देखा,
वे रोज बाजार जाते माँ के लिए फल एवं मिठाई लाते माँ के लिए
मन में अचानक प्यार कैसे भर गया
उनका चढ़ा हुआ पारा कैसे उतर गया,
नन्ही गुड़िया ने आजकल---
घर में उत्सव का माहौल था, चारों ओर खुशियों का दौर था
दादा दादी भी पहली बस से आ गए थे, वे अचानक कैसे मान गए थे,
रिश्तेदारों की बधाई भी आई जब माँ अस्पताल से घर आई ,
दादी ने मुन्ने को गोदी में उठाया और बारह वर्ष की गुड़िया को
अपने पास बुलाया बोली देख तेरा भैया है आया,
कितना सुंदर और प्यारा
नन्ही गुड़िया ने आजकल----
बारह वर्ष की गुड़िया ने उचकती सी निगाह से भाई को देखा
और झट से माँ के पास जाकर, उनकी आँखों में झांका
एक मूक सा स्वर जागा, नन्ही ने माँ से कहा
माँ मैंने तुम्हें कई बार अस्पताल जाते देखा,
मेरी वो अजन्मी बहनें कहाँ है,
जो आज तक घर ना आई क्या उनकी चिंता किसी को ना सताई?
क्यों वो बहनें हैं इतनी पराई ? क्यूँ वो कभी घर ना आई ?
नन्ही गुड़िया ने आजकल-----
माँ ने गुड़िया के सर पर ममता का हाथ फेरा और मूक भाषा में कहा,
बेटी मैंने तेरा तूने मेरा दर्द समझ लिया,
लेकिन जो मैंने सहा वो तू कभी मत सहना,
जमाने से लड़ जाना बहादुरी से मुकाबला करना,
बस नारी होकर नारी की हत्या तू कभी मत करना, तू कभी मत करना
नन्ही गुड़िया ने आजकल--------
नन्ही ने माँ से कहा, माँ मैं तो बहादुर बन जाऊँगी
नारी होकर नारी की हत्यारी,
मैं ना कह लाऊँगी लेकिन आज एक प्रश्न मेरे मन में भी कुलबुलाया है,
जो आदर्श तुमने मुझे सिखाया है
उसे तुमने अपने जीवन में क्यों नहीं अपनाया है?
माँ ने कहा, बेटी दिल तो मेरा भी तब बहुत बिलबिलाया था
अपनी दयनीय दशा पर दर्द भी भर आया था,
लेकिन एक राक्षस मेरे जीवन में भी आया था,
बेटे की चाह में जिसने मेरी मासूम बेटियों को बलि चढ़ाया था
नन्ही गुड़िया ने आजकल--------
नन्ही ने माँ से कहा कहा, माँ इस परंपरा को तोड़ दूँगी मैं,
समाज को ऐसा आईना दिखाऊँगी मैं बेटे से बढ़कर नाम कमाऊँगी मैं,
तेरी यातना पर सुकून का मरहम लगाऊँगी मैं ,
इस दुनिया में ऐसा जहान बनाऊँगी मैं,
एक पिता से बेटी पाने की मन्नत मँगवाऊँगी मैं
नन्ही गुड़िया ने आजकल--------
