नाराज़
नाराज़
नाराज़ भी खुदी से हूँ , और शिकायत भी खुदी से है,
ऐ दिल तू ही बता की तू किस मुश्किल में है,
वो भी तो तेरा ही अक़्स है,जिससे तू ख़फा है,
मैं भी तो तेरा नूर हुँ, फिर तू क्यों ज़ुदा है,
जब सब कुछ रब राज़ी तो ,फिर ये ख़िलाफ़त क्यों,
जब सब में ही रब दिखे तो,फिर ये आफ़त क्यों,
तेरी बुज़दिली ऐ दिल अब मुझे नाशाद करती है,
कहीं तो है तेरी भी शमां,जो तुझ पर हक़ रखती है,
यहाँ नहीं तो कहीं और...कहीं और नहीं तो....
कहीं और...मंज़िले और भी है....रास्ते और भी है.
