नाराज़गी
नाराज़गी
जब तेरी याद मुझ को आए
मैं अकेला बैठा मुस्कुराऊँ
मैं सोचू तेरी वो बातें
तेरी बातों में फिर खो जाऊँ
मुझ को नजर आए तू सामने
पर कैसे तुझे मैं ना छू पाऊँ
अब मैं किसको नाराज़गी दिखाऊं
के क्यों तू नहीं मेरी जिंदगी में
मैं कैसे फाड़ू पन्ने जिंदगी के
जिसमें तू संग था मेरे
मैं कैसे वापस लाऊं वो पल
जिस पल तू मुझसे हुआ था जुदा
अब मैं किसको नाराज़गी दिखाऊं
के क्यों तू नहीं मेरी जिंदगी में
तू फिर से लौट के आजा जिंदगी में
मैं तुझ को सताना चाहूं
मैं खोया सा रहने लगा हूं
जाने कैसा तेरा हाल है
क्यों यह हालात ऐसे हैं
जाने कहां तू है
अब मैं किसको नाराज़गी दिखाऊं
के क्यों तू नहीं मेरी जिंदगी में

