एक टुकड़ा धूप
एक टुकड़ा धूप
तु कुछ पल ठहर मेरे संग
जैसे, धूप का एक टुकड़ा
भला कैसे, धूप का एक टुकड़ा
जैसे, बंद कमरे में रोशनदान से आती धूप
ठहरना मुश्किल हैं
मुश्किलों में ठहरना और भी मुश्किल
मैं चलते चलते रुक सा जाता हूँ
किसी सोच से उलझ जाता हूँ
उन उलझनों काे सुलझाने में
खुद से रुठ जाता हूँ
बेवक्त सोता रहता हूँ
बिना दर्द के रोता हूँ
खोया खोया सा रहता हूँ
उस बंद कमरे में
एक टुकड़े धूप की तरह।