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Shishir Mishra

Tragedy Classics Inspirational

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Shishir Mishra

Tragedy Classics Inspirational

नाम याद क्यों होगा....

नाम याद क्यों होगा....

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अब उसका नाम भी याद हमें क्यों होगा, 

जो मिल गया है वो पहले जैसा क्यों होगा... 


चलते चलते दश्त में एक अब्र ने सोचा, 

पतझड़ में सूखी टहनियों का दीदार क्यों होगा, 


निगाहें छेड़ देती हैं तार दिल के हर दफा, 

वरना मुसाफिर सा एक पुतला जान बना क्यों होगा, 


दीवाना कर गया था जो शख़्स दो चार दिन में मुझे, 

वो शख़्स दो चार दिन बाद कहीं और होगा, 


शौक ही है बचपन का मोहब्बत का खेल भी, 

बुढ़ापे में वो दिल कमज़ोर हुआ क्यों होगा, 


रोक ले खुद को तसव्वुर में उलझने से ऐ इंसा, 

शब ए वस्ल में भला फिराक का चर्चा क्यों होगा, 


तुमने रो दिया तो तुम्हारी मोहब्बत सच्ची, 

किसी महफ़िल में भला बुत का कहा क्यों होगा, 


हर आते हुए शख़्स से वादे नही किया करते, 

ना जाने वो कौन सा वादा तोड़ कर आ रहा होगा। 


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