नाम काबिल न हुआ
नाम काबिल न हुआ
झुकी जो नजर असर दिल न हुआ
उठी जो नजर नाम कातिल न हुआ
लहराई जो जुल्फें खुल के कंधों पर
शर्म से घटा बरसे ये काबिल न हुआ
छनकाई है जो तूने छम छम पायल
बचाले डूबते ये दम साहिल न हुआ
काले नयनों न लगाओ काला काजल
हुआ सबब रात, दिन हासिल न हुआ
बैठे हो क्यो तुम हवाओं के खिलाफ
मदहोश तेरी महक होश शामील न हुआ
झरते मोती अनमोल तेरे खिलखिलाने से
रहूँ बेदिल तुमसे हुक्म तेरा तामिल न हुआ