नाम चाहिए
नाम चाहिए
है बड़ी ज़िन्दगी थोड़ा सा मुक़ाम चाहिए
पैसे के बिना किसे आज काम चाहिए।
हाथ का मैल है पैसा आता-जाता रहा
न दौड़ पीछे तू क्यों तेज़-गाम चाहिए।
प्यार का पानी न पिला सकी जिसे ज़िन्दगी
ताउम्र ढूंढता रहा मैखाना वो जाम चाहिए।
क्या बहारें, क्या फिज़ाएँ बेख़बर हो गई
फूल बन के खिलूंगी गुलफ़ाम चाहिए।
क्यों बड़ी ऊँचाई से वो ज़मी पे आ गिरें
मुब्तदी को हशवो इल्तिज़ाम चाहिए।
तुझे ज़माने की नज़र से मैंने छुपाया है
दहलीज़ पर खड़ी सुहानी शाम चाहिए।
"नीतू" वो फूल है जो बागों में नहीं खिला
हुस्न पर नाज़ है बस एक नाम चाहिए।
गिरह
आओ मिलकर सजाए चाँद की आरजू
वादे न खोखले न ही पैग़ाम चाहिए।