ना समझ था मैं
ना समझ था मैं
ना समझ था मैं , जो अकड़ कर न समझा
अकड़ते तो मुर्दे है, ये भी पकड़ कर न समझा
इस खुमार में के, कोई समझाए कुछ मुझे
किस खुमार में के, लड़ झगड़ कर न समझा
उसने जो समझाया, पकड़ पकड़ कर मुझे
मेने एक न समझा, अड़ अड़ कर न समझा
वो जो आ गए समझाने, दर्श ए अखलाकी
मैं केह उठा जा, पीछे पड़ पड़ कर न समझा
आख़िर क्यों न समझा , कुछ भी तू 'हसन'
अब क्या समझे तू, जो उजड़ कर न समझा!