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Jyoti Agnihotri

Inspirational

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Jyoti Agnihotri

Inspirational

मज़दूर

मज़दूर

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मद्धम-सी रौशनी में,

मेरी लकीरों से ज़्यादा,

मेरे हाथों के निशान दिखते हैं।

हम मज़दूर हैं साहब,

अलग अलग दामों में बिकते हैं।


मेरे इन्हीं हाथों से लड़ी की लड़ी,

इमारतें बनी खड़ी हैं।

मगर विडम्बना यह है कि,

मेरे पीछे पुश्तैनी कड़ियाँ पड़ी हैं।


बाप के बाद बेटा और

फिर बेटे का भी बेटा,

बस इन्हीं लड़ियों में ही,

मेरी वंशावली बंधी है।


मैं जन्मांत मज़दूर हूँ,

हाँ साहब मैं युग -युगांतर

से ही मज़दूर हूँ।

बस इसी थाह में मैंने मेरा,

अपना सारा जीवन समेटा है।


तयशुदा दामों में जब,

मेरी हस्ती घिसटती है,

तब जाके आग पेट की बुझती है

हम मज़दूर हैं साहब अलग -अलग,

दामों में बिकते हैं।


इन विकृत हाथों ने

सदैव सौंदर्य ही गढ़े हैं।

मेरे मैले हाथों के कामों से

औरों के नाम बड़े हो गये हैं।

हम मज़दूर थे साहब सो

हमेशा ही बेनाम से हो गए हैं।


मद्धम सी रौशनी में,

मेरी लकीरों से ज़्यादा ,

मेरे हाथों में बने निशान दिखते हैं।

हम मज़दूर हैं साहब,

अलग अलग दामों में बिकते हैं।



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