मुट्ठी है ज़िंदगी
मुट्ठी है ज़िंदगी
खोलो तो लकीरों का समुन्दर,
बंध हो तो ताकत का गुमान,
साथ हो तो अनेक हाथों को संभालने का साहस,
अलग हो तो तरंगों में जुलते ये हाथ!
मुट्ठी है ज़िंदगी,
जितनी गहरी उतनी ही खुद में संभली,
जितना पढ़ो उतना कम और,
ना सोचो तो हर पल एक नयी उमंग!
पिता की एक ऊँगली ने चलना सिखाया,
ज़िंदगी भर उन उंगलियों ने साथ निभाया,
एक उठते हुए अंगूठे ने बिना कहे
शुभकामनाओं का सागर बरसाया,
माँ की पांच उंगलियों ने दुनिया की
बहेतरीन रसोई खिलाई,
और उन्ही पांच उंगलियों ने मिल के
संस्कार की बातें समझाई!
पांच उंगलियाँ जिसका निशान
कहीं न कहीं छूट जाता है,
रूप रंग में कहीं वो बिखर जाता है,
पर रहती हमेशा वो साथ है हमारे!
मुट्ठी है ज़िंदगी,
पांच उंगलियाँ जब सितार पे पड़ी तो
अनकही कितनी ही आवाज़ गुंजी,
खुले हाथों ने संगीत बिखेरा और
बंद हाथों ने, उसे है संजोया,
पांच उंगलियों में कला का सागर समाया,
हूबहु जीते जागते चेहरे को कागज़ पे उतारा गया,
क्या क्या कमाल दिखाया इन उंगलियों ने,
रंगों से जीवन है सजाया!
मुट्ठी है ज़िंदगी,
बन्दूक पे टिक्के दुश्मनों को डराया,
मुट्ठी बन कर तहलका मचाया,
कहते है जन्मता है बंद मुट्ठी,
भगवान का ये फरिश्ता,
इन्ही हाथों से जीवन महकाता
और बढ़ाता है इसकी प्रतिष्ठा!
मुट्ठी है ज़िंदगी,