"मुसीबत सी बड़ी पाठशाला कहाँ है. "
"मुसीबत सी बड़ी पाठशाला कहाँ है. "
मुसीबत सी बड़ी पाठशाला कहाँ है..
किताबें बहुत सी पढ़ी आज तक,
गुरुओं से भी सीखा बहुत कुछ,
मगर जिंदगी की असली हकीकत,
लड़खड़ाते कदम मुश्किल डगर,,
अनजान राहें बेजाँ अरमाँ,
फिर भी ज़ीने की ललक,,,
जाने क्या क्या आँखों के ज़ज्बे.
जो कदम को कभी रुकने न देते,
मन को कभी थकने न देते....
बिन कहे बिन सुने सब कुछ कर गुज़रने की ख्वाहिश !
अविचल अकेला पाथेय बढ़ता रहा है..
मुसीबत सी बड़ी पाठशाला कहाँ है.......?
ये मुश्किले इतनी दुष्कर क्यूँ होतीं,,
बड़ा अजीब सा सफऱ....
हसने वालों का दर्द न समझे..
रोने वाले का हमदर्द न होता...
फर्क अपनों में छुपे पराये
पराये में छुपे अपने को
शायद कोई खोज पाता कहाँ है...
मुसीबत सी बड़ी पाठशाला कहाँ है.... ?
समय साथ और समर्पण अपनों का
पाने जैसा सौभाग्य कहाँ....
अक्सर बस लोग खुशियों के साथी...
जाने क्यूँ इतने कम होते
हैं सच्चे जज़बात यहाँ.............
हर कोई शब्द बाण में अव्वल यहाँ है....
मुसीबत सी बड़ी पाठशाला कहाँ है...?
सीखा बहुत कुछ इन डगर से....
सपने ज़ब बिखरते हैं तो भेदते भी बहुत,
छोड़ दो उम्मीद का दामन
जी लो अपनी ख़ुशी
रखो उनको ख़ुश जो आपकी ख़ुशी की वजह हैं..
क्यूँ जाया करें वक़्त उनपर....
जो कभी न हुए हमारे
चाहे ख़ुशी का सागर
या दुख का बादल...
चल जी ले जिंदगी
जला अपने सत्कृत्यों का सूरज,,,
भाग्य में लिखा टलता कहाँ है......
मुसीबत सी बड़ी पाठशाला कहाँ है.......?
कुछ तो रब रहनुमा है आँखों में अभी...
जागते हुए भी सपने बुन रहे..
पा करके इन्हें बहुतों के लिए बहुत कुछ करना यहाँ है...
मुसीबत सी बड़ी पाठशाला कहाँ है...... ?