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Ranjana Dubey

Abstract

4.7  

Ranjana Dubey

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अभिमान मुझे मैं नारी हूँ

अभिमान मुझे मैं नारी हूँ

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सचमुच क्या नारी दिवस ही पर्याय है तुम्हारा !

तुम मनुज की शक्ति और प्रेरणा हो

तुम्हें तो बस तेरा आसमान चाहिए !

क्या बस ओ मुट्ठी भर महिलाओ के सपनों की उड़ानें


देती रहेंगी तुम्हारे अधरों पर मुस्कान

कब तक पढ़ोगी दूसरो की कहानी

चल उठ रच अपना भी इतिहास

क्या सचमुच बेटी हर पिता का अरमान है ?


पूछो उस बाला से नारी दिवस की सार्थकता

जो अधीर है असहाय है कोस रही खुद को क्यू मै बाला हूँ ?

वक्त मिले तो दर्द पूछना उस बेटी की

जिसका पिता मजबूर है अनगिनत अभाव है


प्यारी है उसको भी प्राणों से ज्यादा बेटी

पर मजबूर है दुनिया की दस्तूरों से

कहती है उसकी बेटी काश ! मै बेटी न होती

आज मेरा पिता घर घर रिश्ते की भीख न मांगता


काश ! मेरा भी स्वछन्द आसमा होते

मेरे भी सपनों के परवाज होते

कुछ तो ऐसा करें नारी अपने स्वत्व मे जाग उठे

खुद को पहचान ले कुछ अद्भुत करने को ठान ले

हर बेटी के अधरों पर मुस्कान हो जीने की अरमान हो

अपना इक आसमान हो कुछ तो पहचान हो


पुष्प गुच्छों से भले न करें सम्मान सफल नारी का

पर कोशिश है गुजारिश है दें जरूर

स्मित उन असहाय अधरों पर

आभाव न बनें उनके मंजिल की बेड़िया

हर सफल नारी से अनुरोध है मेरा

जगायें उनमे उम्मीद की रश्मि


ओ भी बन सकती हैँ गार्गी अपाला

महिला दिवस की सार्थकता इस बात मे होगी

ज़ब गर्व से हर नारी कहे

अभिमान मुझे मैं नारी हूँ।


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