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Ranjana Dubey

Abstract

4.5  

Ranjana Dubey

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समय का चक्र

समय का चक्र

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कुछ तो है ज़िन्दगी से छूटता सा जा रहा, 

समय की रेत सा जाने क्या खोया चला, 

स्वप्न के ताने बुनी थी ज़िन्दगी एक खूबसूरत,. 

पर न जाने वक़्त ये बदला सा क्यूँ लगे... 


ये सच या वो सच इस उधीरण मे खोया है मन 

उम्मीदों का घरौना खुशियों से लबरेज करता 

क्यूँ टूटती जीवन धारा से इस तरह बेहाल होता 

जागती आँखों में सपने आखिर क्यों आते ही हैं, 

खुशियों से ज्यादा ज़ब हमें रुलाते ये हैं 


बस साथ चलने से कोई साथी नहीं होता हमारा 

ज़ब हमारे अंतर्मन को समझ सकता नहीं

क्या होता है बचपन जो कभी जाना नहीं 

तिनके तिनके जोड़ करके अकेला पथ में चली 


भावनाओं का साथी सच्चा कोई होता नहीं 

मत कर उम्मीद इतना रख खुद को व्यस्त खुद में 

तुझ सा कोई मिलेगा ये कभी होता नहीं 

खुद को बदलो वहीं जहाँ मिले खुशियाँ तुम्हें 

बहुतों को ख़ुश करके अपनी खुशी न भूल जाना 


तुम अलग हो तुम ही हो खुद सी 

इससे अलग बस बिछोह दुख है.. 

बदला है वक़्त फिर बदलेगा 

तुम्हारे सपनों का सूरज तुमको मिलेगा 

रख कदम आगे बढ़ो 


अपने ख़्वाबों को हकीकत में कर लो 

सच और साहस से बड़ा को होता नहीं 

बिन दुखाये दिल किसी का खुद के खातिर चल निकल 

ये समय का चक्र है यूँ बीतता जायेगा.. 


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