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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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मुश्किलें

मुश्किलें

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मुश्किलों का कहर भी थमा है कभी

जीना भी भला रुका है कभी।


अंतर आया है अब थोड़ा-सा ही

कहर बरपा है लेकिन अनसुना-सा ही।


मुश्किलें अब ब्याहता हो गई

गंभीर से अतिगंभीर हो गई।


धूल के कण से ही भयभीत हो गई

संघर्ष को नया आयाम दे गई।


राई को पहाड़ कर गई

विपदा से आपदा हो गई

काया को छाया कर गई।


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