मुर्गेबाजी का खेल
मुर्गेबाजी का खेल
किसी समय में लखनऊ की मुर्गा लड़ाई दूर-दूर तक मशहूर थी
शुरू होने से पहले ही लोगों को,शहर भर को खबर हो जाती थी
सैकड़ों की संख्या में लोग इस मुर्गा की लड़ाई को देखने आते थे
और थोड़ी ही देर में कई रुपयों की बाजियां यहाँ लग जाती थी II
अच्छी नस्ल,अच्छे रंग और फुर्तीली प्रवृति को देख मुर्गे खरीदते
खिला-पिला, प्रशिक्षण देकर लड़ने को तैयार इन्हें किया जाता था
लड़ाई से पहले अपने-अपने मुर्गों की चोंच को नुकीला बनाकर
मुर्गेबाजी के लिए उन मुर्गों को बड़े –बड़े मैदानों में ले जाते थे II
बोली लगती मुर्गों पर शाही नवाब की तरह पैसा बहुत लुटाते थे
फर्क ना पड़ता लड़ते –लड़ते दोनों मुर्गे लहु-लुहान हो जाते थे
ये खूनी खेल चलता रहता लोगों का शोर और बढ़ता जाता था
अपने शौक के लिए कई नवाब भी इसका आयोजन करवाते थे II
अपने मनोरंजन के लिए मुर्गों को खूनी खेल का हिस्सा बनाते
मुर्गों की लड़ाई के लिए जाने कौन सी ये परम्परा निभाते थे
बेजुबानों का बहता खून देखकर दिल नहीं पसीजता किसी का
इस लड़ाई के खेल में जाने कितने मुर्गे बेमौत ही मारे जाते थे II