मुंशी प्रेमचंद्र जी
मुंशी प्रेमचंद्र जी
वाराणसी का छोटा सा लमही गांव
मुंशी प्रेमचंद्र जी की यादें संजोए बैठा है
साहित्य के कलम का यह जादूगर मानो
आज भी अपनी साहित्य की खुशबू बिखेरे बैठा है
जब भी मुंशी प्रेमचन्द जी नाम है आता
साहित्य का जैसे पूरा संसार उमड़ आता है
कलम के इस महानुभाव का जन्म
31 जुलाई सन 1880 में हुआ
मानो जैसे लगा हिंदी साहित्य
में यश कीर्ति वैभव का जन्म हुआ।
जब भी मैं मुंशी प्रेम चंद्र जी महानुभाव के
पैतृक निवास पर पहुंचता हूँ
गांव के प्रवेश द्वार, स्मारक शोध पर से ही
उनके साहित्य की खुशबू से लगता
स्वयं ही उन्हें पास ही महसूस करता हूँ
कभी यहां कालजयी साहित्य बसा करता था
हर घर आंगन वृक्षों पर साहित्य रचनाकार रहा करता था
समय की परिस्थिति का विरोध उनकी कलम
अपनी जुबानी बताती है
सोजे वतन, पूस की रात, गोदान, ईदगाह जैसे रचना
हमें भी भूतकाल की इतिहास भी बताती है
सवा सेर गेहूं रचना और उनके घर रखा बाट
पूरी कहानी जीवंत कर जाता है।
प्रवेश द्वार पर दीवार पर टंगा चिमटा हमें
उनकी ईदगाह की याद दिलाता है।
आज प्रेम चंद को जयंती आई है
फिर से प्रशासन को इस कलम के सिपाही की याद आई है।
आज मुशी प्रेम चंद्र का गांव
5100 दीपों से फिर प्रज्ज्वलित होगा
आज फिर से उनके स्मारक पे
लोकनाट्य और उनका माल्यर्पण होगा
कल फिर प्रेम चंद्र जी का पूरा गांव
समय की विषम परिस्थिति और संकट में होगा।
