मुक़म्मल कुछ नहीं
मुक़म्मल कुछ नहीं
मुक़म्मल कुछ नहीं इस जहाँ में
मदहोशी के मेले सजें हैं हवाओं में
मुसलसल दिल की हसरतें देखो कैसे
पल-पल बदल रही है फ़िज़ाओं में
कभी सुख दुख के बदले सायें
कभी शामिल हो के दुआओं में
महफ़िलों में रोशन शम़ा के
परवाने तरसते रहे बददुआओं में
जज़्बात और एहसासों से परे जहाँ में
मुकम्मल-ए-हर्फ़ खोज रहा शुआओं में
