STORYMIRROR

Kaustubh Nadgir

Drama

4.8  

Kaustubh Nadgir

Drama

मुकम्मल जीत

मुकम्मल जीत

1 min
13.9K


चल पड़ा था मैं दुनिया को जीतने,

खुद ही से मैं हार गया।


ढूंढ़ने चला था सपनों का जहान,

अपनी ही परछाइयों में खो गया।


किसी को हराने का नशा क्या है,

इसकी थी मुझे पूरी खबर।


पर किसी से हारने का ग़म क्या है,

इससे था मैं हरदम बेखबर।


औरों की खामियाँ ढूँढ़ के,

उनपे करता था मैं वार।


समझ नहीं पाया किसकी जीत में,

होती है किसी और की हार।


असली जीत का मतलब,

अब जाकर समझ आया है।


जो अकेले दुनिया जीते उसने,

खुद को हमेशा अकेला ही पाया है।


जो अपने साथ औरों को भी जीताए,

वहीं दुनिया में मशहूर है।


जिस जीत में सबकी जीत हो शामिल,

वहीं मुकम्मल जीत है।

वहीं मुकम्मल जीत है ।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama