मुकद्दर में
मुकद्दर में
मुकद्दर में किसी के क्या लिखा है
ये कोई बता सकता नहीं।
बनाता हूँ मैं 'तनहा' ही मुकद्दर आज
ये कोई जान सकता नहीं।
लिख दिया जो इन पन्नों मैं मैंने
उसको कोई मिटा सकता नहीं।
चाहे कोई हो राजा वज़ीर, प्याजा
इस अंगद के पाँव को
रावण भी हिला सकता नहीं।
मुकद्दर में किसी के क्या लिखा है
ये कोई बता सकता नहीं।
लाता हूँ हंसी से भी तूफ़ान, तिनको
गुस्सा दिखा दिया जो मैंने
धरती से आसमान दिख पाता नहीं।
हर किसी की औकात मुट्ठी में
खामखा किसी को खोल दिखाता नहीं।
चाहे हो ज़िंदगी से लड़ने वाला
रोक सकता हूँ में तनहा मौत को भी
इसलिए तुम सबकी मौत को बुलाता नहीं।
मुकद्दर में किसी के क्या लिखा है
ये कोई बता सकता नहीं।