मुकाम
मुकाम
ब्रह्मपुत्र के किनारे बैठा था उस दिन,
लहरों को निहार रहा था
नदी का बहाव बहुत तेज़ था
लहरों में उछाल भी बहुत था
किनारे पर एक छोटी सी नाव
लहरों से जूझने की कोशिश में
बड़ी जद्दोजहद में थी
नाव आगे बढ़ती,
लहर में उछाल आता
नाव फिर डगमगा जाती
फिर नाव कोशिश करती
थोड़ा आगे बढ़ती
फिर उछाल आता
नाव पीछे तैर जाती
यूँ ही कोशिश करते करते
नाव आहिस्ता आहिस्ता आगे बढ़ रही थी
नाव पर सवार थी एक चींटी
नाव जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी
चींटी भी बढ़ रही थी
दोनों एक दूजे के साथ
लहरों के विरुद्ध
एक अथक प्रयास
समाज के सामने
एक उदाहरण पेश करते हुए
हम इंसानों की भी तो
यही नाव जैसी ही कहानी है
चलना पड़ता है
धारा के विरुद्ध
नियमों के प्रतिरूप
जो धारा के संग चलते हैं
वे हिस्सा बन जाते हैं
निरुद्देश्य भीड़ का
विशाल जन समुदाय का
जिसका नहीं कोई मकसद
न ही कोई मंजिल
बस चलते रहते हैं
एक अनजानी राह पर
भीड़ के संग
धारा के संग
और कुछ चुनिंदा लोग
चलते हैं धारा के विरुद्ध
समाज के विरोधों के सामना करते हुए
पूरी जीवटता के साथ
एक पक्का संकल्प
एक दृढ़ विश्वास
एक सुनिश्चित योजना
खतरों से लड़ने की जीजीविषा
जीतने का जज्बा लिए
और वही पहुँचते हैं मंजिल तक
बढ़ाते हैं कदम
अपने प्रारब्ध की ओर
पूर्ण पुरुषार्थ के साथ
कुछ पाने की लालसा
कुछ हासिल करने की ललक
और सफलता जोहती है
बाट उनकी
मंजिल पर
अपने साथ चलने वालों को भी
जो देतें है सहारा
हर कदम पर
और नाव को आखिर
किनारा मिल गया
लहरें शांत हो चुकी थी
तूफान शांत हो चुका था
समाज का विरोध भी ख़त्म हो चुका था
हार न मानने वालों को
अपना मुकाम मिल चुका था।
बाकी तो सभी
भीड़ का हिस्सा बन चुके थे
क्या आप भी भीड़ का हिस्सा बनना चाहते हैं
या चाहते हैं कि मुकाम मिले?