क्यारी
क्यारी
नारी एक रूप अनेक
नारी की परिभाषा है कई,
नारी निभाती है किरदार कई,
कभी रात सी गहरी बन जीवन को समझती है,
कभी गुरु सी सौम्य बन जीवन को समझाती है,
रूप धर के मां का ममता बिखेरती,
सारथी है वो जो रास्तों को टटोलती,
अपनी पहचान स्वयं वो रचती है,
हर क्यारी है खिली खिली बस जब वो हस्ती है,
नारी धूप को सहती है,
छांव को भी संजो कर रखती है,
पोषित है कुटुंब आंच में जब वो तपती है,
जांचों जो बांचो नारी शास्त्रों के पन्नो सी है,
संयम, सौम्य, सुंदरता की झलकी है,
किसी रचयता की अपूर्ण पंक्ति सी है,
नारी वीणा के स्वर सी,
गुरुजनों के बोल सी,
मठ में बज रहे भजन सी,
नारी चुप भी एक बात सी,
नारी बरखा सी शीतल है,
अपने भीतर बसंत सी चंचल है।।