मुझको रंग जाइये
मुझको रंग जाइये
दूर जाकर न तुम हमको तरसाइये
अबकी होली जरा पास तो आइये
मेरी राधा भी तुम मेरी मीरा भी तुम
अब तो तुम रुक्मिणी मेरी बन जाइये
ईद के दीद की क्या जरूरत मुझे
खोल घूँघट जरा चाँद दिखलाइये
घर के बाहर है सारा जमाना खड़ा
इन बहानों में मुझको न उलझाइये
लाल पीले गुलाबी मैं रंग लाया हूँ
बैठ खिड़की पे अब तुम न शर्माइये
तेरी सारी सहेली खड़ी है यहाँ
दूर रहकर न तुम मुझको तड़पाइये
चाह बचती है इक बस ह्रदय में यही
प्यार से जान तुम मुझको रंग जाइये
चढ़ गया है नशा फ़ाग का हर कही
भंग नजरों से जाँ अब तो पिलवाईये
तुम रंगों जाँ मुझे मैं तुम्हें फिर रँगू
इस तरह जान संग मेरे मुस्काइये।