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मुझे वक़्त कुछ ज्यादा लगता है

मुझे वक़्त कुछ ज्यादा लगता है

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हां मुझे वक़्त कुछ ज्यादा लगता है

रिश्तो को बनाने में

उन्हें सही से समझने में

फिर उनपर अपना हक़ जताने में

मुझे वक़्त कुछ ज्यादा लगता है


सुबह को अपनाने में

रात को भुलाने में और

फिर से कदम उठा कर एक नए सफर पर निकलने में

मुझे वक़्त कुछ ज्यादा लगता है

हां मुझे वक़्त कुछ ज्यादा लगता है


सच को झूठलाने में

झूठ को समझाने में

फिर उसी ऐतबार को बनाने में

मुझे वक़्त कुछ ज्यादा लगता है

ऐसा नहीं है की मेरा झूठ से कोई नाता नहीं है

मगर सच मानिये वो मुझे कुछ ज्यादा भाता नहीं है

कभी आज का कल हो जाता है

तो कभी मुश्किल वह पल हो जाता है

जब सामने फैला आसमान

पल में ही चल विचल हो जाता है


फिर उसी वक़्त को समेटने में मुझे वक़्त कुछ ज्यादा लगता हकई बार गिरती हूँ

कई बार टूट जाती हूँ

उन्ही चोटों पर मलहम लगाकर

मुझे फिर रणभूमि में उतरने में

वक़्त कुछ जायदा लगता है


मैंने कईयो को कहते सुना है की मुझे वक़्त कुछ ज्यादा लगता है

खुद को बदलने में

और ज़माने के रंग में खुद को ढालने में

हां लगता है मुझे कुछ ज्यादा वक़्त

क्योंकी ना मैं मौसम हूँ न हूँ में तारों भरी रात


मेरे पास है एक दिल,

जिसमें बस्ते है मेरे जज़्बात

जिनको समझाने में

और फिर कदम उठाने में

मुझे वक़्त कुछ ज्यादा लगता है।













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