मुझे घर जाने से लगता डर
मुझे घर जाने से लगता डर
मुझे घर जाने से लगता डर,
थोडा सा ही सही ज़हर दे दो।
बाबा की काठी बूढी हुई
वो दर्द छुपाएंखुश होकर।
घरवालों के हर आँसू कि नमी समेटे
छत भी रोती रिस-रिस कर।
माँ की आँखों मे सपने दिखें
उन सपनो से बचता मै छुप-छुप कर।
मुझे घर जाने से लगता डर
घर का किराया ज्यादा है
चुकता है बहना की पढ़ाई के दम पर
आँखें अब ऊपर उठती नहीं
शर्मिंदा जीतीं घुट-घुट कर।
दुनिया मुझ पर अब हँसती है,
मजबूरी भारी ज़िल्लत पर।
मरने की मेरी औकात नहीं
जीता हूँ वायदों की कीमत पर
मुझे घर जाने से लगता डर।