मुहब्बत भी मुस्कुराती हैं
मुहब्बत भी मुस्कुराती हैं
ख़ुद को पत्थर सा बना लेता हूं,
हर मुश्किल से टकरा जाता हूं !
जब सपने सज़ा लेता हूं,
मंज़िल को अपना बना लेता हूं !
जब सपने को अपना बना लेता हूं,
कठिन से कठिन डगर भी चल जाता हूं !
मुहब्बत भी मुस्कुराती हैं,
मेरे आगोश में ख़ुश हो जाती हैं !
ख़ुद को इतना प्यार कर जाता हूं,
हर सपने साकार कर जाता हूं !
दर्पण से रास्ता पूछ लेता हूं,
ख़ुद समंदर हो जाता हूं !
ख़ुद मस्तमौला के रंग में रंग जाता हूं,
रोज़ के इस खेल में पारंगत हो जाता हूं !
मुहब्बत भी मुस्काती हैं,
मेरे आगोश में ख़ुश हो जाती हैं !