मस्ती की पाठशाला
मस्ती की पाठशाला
स्कूल टाइम मस्ती भरा टाइम
दोस्तों के साथ शरारतों के सागर में गोते लगाने का टाइम
क्या बताये मजा ही आ जाता था
सवेरे-सवेरे घर से सात बजे बस्ता ले कर निकलना होता था।
रास्तों में बच्चों का जमावरा लगा होता था,
कौन पहले स्कूल पहुँचेगा यही अफसाना रहता था
भागते-कूदते, छोटे-बड़े, रास्ते नापते हुए लो पहुँच गये स्कूल
कक्षा में पहुचते ही बेंच के लिए लड़ना सुहाना होता था।
कौन आगे बैठेगा, कौन पीछे बैठेगा
किसने पाठ याद किया,किसने होमवर्क सारा किया
कौन लंच में क्या लाया, किसको पॉकेट मनी मैं कितना मिला,
किसने कौनसी मूवी देखी, किसको कौन सा हीरो भाया
किस हीरो-हिरोइन का कितना फ़ोटो न्यूज़ पेपर से कट किया।
यही चर्चा का विषय होता था।
जब टीचर आती थी तो शान्ति का माहौल बन जाता था,
टीचर के जाते
ही शोर-शराबा शुरु हो जाता
बेंचो के ऊपर उछल-उछल कर गाना, गाना
पेपर की बॉल बनाकर एक-दूसरें के ऊपर फैंकना
अपना लंच छोड़ कर,दोस्त का लंच चट कर जाना,
और बोलना, यार तेरी मम्मी क्या खाना बनाती हैं,
आंटी से कहना कल दो पराठे एक्स्ट्रा देना।
हर पल हर दिन नयी सुबह का इन्तजार होता था
बस्ते के अंदर किताबों के साथ-साथ
खेलने और खाने का सामान ज्यादा होता था।
कब स्कूल पूरा हुआ और कॉलेज शुरु हुआ
कालेज पूरा हुआ,जॉब लगी
जॉब लगी कुछ सालों बाद शादी हुई
शादी होते ही दोस्तों के साथ उठना-बैठना कम हुआ।
कुछ टाइम बाद वही स्कूल का फ़साना फिर से शुरु हुआ
अब हम नहीं, अपने बच्चों के साथ वही तराना फिर से शुरु हुआ।
स्कूल टाइम मस्ती भरा टाइम,
दोस्तों के साथ शरारतों के सागर में गोते लगाने का टाइम।