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pawan punyanand

Tragedy

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pawan punyanand

Tragedy

मरघट

मरघट

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चाँद में नही दिखती अब प्रेयसी,

कोयल की आवाज ,

कानों को सुकून नही देती,

सभी पुरानी बातें लगती हैं,

उन इमारतों की तरह

जो अब वीरान है,

या अवशेष हैं ,भव्यता के

अब आँखों के आगे

लाशें बिछी हैं,

गिनती उनकी बढ़ती जा रही है,

कोई बचाने में,कोई दफनाने में,

कोई बताने में,कोई समझाने में,

दिन रात लगे हैं,

बस एक खामोश सी उदासी,

घेरे हुए सबको,

पृथ्वी मरघट जान पड़ती है।


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