मृग तृष्णा
मृग तृष्णा
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
कभी लगता है
ये दुनिया
एक भूल भुलैया सी है,
यहां जितना सोचो,
जितना चाहो उतना ही इस चकरव्यूह में धंसते जाओ,
इच्छाओं के पीछे पीछे भागते जाओ।
यहां सब कुछ आभासी है,
एक मृग तृष्णा है,
जिसमे सब फंसते चले जाते हैं,
बाहर निकलना भी चाहें,
तो खुद बाहर निकल नहीं पाते हैं।
अजीब खिंचाव है,
अजीब आकर्षण है
इस जीवन मृग मरीचिका में,
जहां दूर से
प्यासे को हलक तृप्त करने के लिए,
पानी का आभास दिलाती है,
पर वास्तव में होता कुछ नहीं,
बस भ्रम के सिवाए।
सब भागते रहते हैं,
इसी उम्मीद में कि शायद दौड़ अब पूरी हो,
पर दौड़ पूरी नहीं होती,
भागना होता है एक अनंत तक।
ना चाह कर भी
इस दौड़ का हिस्सा बनना पड़ता है,
और परिणाम कुछ नहीं होता,
सिर्फ मलाल, ठगा सा,
और खाली हाथ।