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Dinesh Sen

Abstract

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Dinesh Sen

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मोर सा मन मोर

मोर सा मन मोर

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मोर सा मन मोर,

आज नाच रहा है।

उडी है पतंग या

चित चोरी हो गया।


तपन सी उठती है 

क्यूं लपटों के साथ,

क्यूं आज अजब आब

अकारन ताप रहा है।


यूं तो शेष समंदर में,

रहे नीर हमेशा।

तो क्यूं पपीहे की भांति,

प्यासा तड़प रहा है।


दिल में प्यार भरा है,

जो होगा कहां अथाह।

तो क्यूं बादलों की बाट,

आज ताक रहा है।२।


पिया आएंगे जरूर,

लेके बारिश कल प्यार की।

पर दिल आज मयूरी,

चाल में क्यूं नाच रहा है।


सरमा जाती है सर,

झुका कर सबनम भी।

तो सब नमी इन आंखों से,

क्यूं बांट रहा है।


ये बसंती मौसम,

कातिल सा हो गया है।

पल पल पिया की याद,

से दिल काट रहा है।


आया है जबसे आंएंगे,

पिया परदेसी।

सच कह रहा है या,

फरेबी आंक रहा है।


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