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Nirupama Naik

Drama

5.0  

Nirupama Naik

Drama

मॉडर्न कठपुतलियां

मॉडर्न कठपुतलियां

3 mins
334


ज़माना बदल गया है और उसके साथ-साथ बहुत सी चीजें बदल चुकी हैं। पुराने ज़माने के कुछ यादगार चीजों में से एक है कठपुतलियों का वो नाच/नाटक जिसके द्वारा लोक व्यवहार, कथा, कहिनियों को नाट्य रूप पे पेश किया जाता था। हर गांव, गली, नुक्कड़ पे ये देखने को मिलता था। पर आज टेलीविज़न ने इन सब का रूप ले लिया है। टीवी पे प्रसारित धारावाहिकों ने इन कठपुतलियों की जगह ले ली है। अब न वो लोग हैं जो कठपुतलियां नचाते थे और न वो कठपुतलियां। कुछ कुछ जगहों पे कभी कभार नज़र आ जाते हैं पर धीरे-धीरे ये लुप्त होता जा रहा है।

वैसे हम थोड़ा गहराई से देखें तो उन कठपुतलियों की जगह आज इंसानों ने ले ली है। चाहे वो किसी आई.टी. कम्पनी का कर्मचारी हो या कोई राजनेता, या किसी दूसरे या तीसरे विभाग से तलूक रखता हो। सब कथौतलियों की तरह ही दुसरों के इशारों से अपनी गति को बढ़ाकर चल रहे हैं। क्योंकि अब बेरोज़गारी और मजबूरियाँ इतनी बढ़ चुकीं हैं कि इंसान अपने सपनों को जीने की इच्छा को नज़रअंदाज़ करके आगे बढ़ता जा रहा है।

पीछे क्या छूट गया इसका अंदाज़ा नही रखते। गुज़रते वक़्त के साथ जब वो इंसान अकेला बैठ कर अपने बारे में सोचता है तो उसे दिखता है अपना वो सपना जिसे वो कभी जी नहीं पाया। फिर सोचता है मैंने कभी कोशिश भी तो नहीं की। और किस्मत को कोष कर अपना मन हल्का कर लेता है।।

ऐसा ही कुछ हुआ उमेश के साथ। होश संभाला नहीं कि परिवार की जिम्मेदारियों ने सोने ही नही दिया। तो सपनें कहाँ से देखता?

जब कभी नींद आ भी जाती तो सपनों का सैलाब उसे घेर लेता। लेकिन जागने के बाद वो फिर से उन ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में जुट जाता जैसे वही उसके सपने थे और वही हक़ीक़त। हालातों के बेड़ियों ने ऐसा जकड़ा था जैसे उससे निकलना मुश्किल नही नामुमकिन हो।

वो आगे बढ़ता गया, मार्केटिंगऔर सेल्स विभाग में नौकरी करता था, उसका दिन और रात सब एक जैसा ही था। दिए गए टॉरगेट को पूरा करना उसका लक्ष्य बन चुका था। धीरे-धीरे उसका पूरा जीवन एक टॉरगेट बन गया। मानों टॉरगेट नहीं तो वो नहीं।

शादी हो गयी, बच्चे हो गये, अब वो और ज़िम्मेदार बनता गया। उसके साथ ही और ज़्यादा टॉरगेट का भागीदार भी। परएक दिन उसने अपने बेटी की तरफ देखा। उसकी बेटी बहुत ही चंचल स्वभाव की है। उसे देखकर वो सोचता की ये जब बड़ी होगी उसे अपने सपनों को जीने की पूरी छूट दूंगा पर उसे प्रेरणा कहाँ से दूंगा। वो कहीं मेरी तरह हालातों से समझौता न करले। पर इसके लिए उसे ख़ुद के सपनों को जीना ज़रूरी है । पर अब समय और मौका दोनों ही मेरे ख़िलाफ़ हैं। मेरे कदम अब उस और जा चुकी जहां मेरे सपनों के लिए जगह नहीं। मेरे हालातों ने मेरे सपने भूला दिए।

पर हाँ उसके पास अब भी कुछ ऐसा था जिससे वो अपनी बेटी को प्रेरणा दे सकता था। और वो है उसके लगन और जुनून . ...जीसे उसने कभी हालात के हवाले नहीं किया। उसने अपने लगन को और बढ़ाया, जुनून को और उड़ान दिया। ताकि वो अपने बेटी में ये गुण देख पाए।

तो यहां हम ये सीखते हैं के किसी भी कारण वश हम परिस्थितियों और कुछ लोगों के हाथों कठपुतलियां बन जाएं फिर भी हमारे अंदर का जुनून हमसे कभी दूर नहीं होना चाहिए। क्योंकि हम कठपुतलियां नही इंसान हैं। और इंसानों में जुनून बहुत ज़रूरी है। हम वो मॉडर्न कठपुतलियां हैं जिनमे भावनाएं हैं, जोश हैं और जुनून हैं।

बस इससे खोने नहीं देना है....

वरना शायद हम भी कभी लुप्त हो जाएंगे।


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