मोहब्ब्त पर जुल्म
मोहब्ब्त पर जुल्म
में रो रहा हूं
तू हंस रहा है
ये कैसा ज़ुल्म तू कर रहा है
एक बेगुनाह के प्यार का
तू क़त्ल कर रहा है
ज़िंदा रहकर भी हम क्या करें
मेरी जिंदगी का तमाशा तू कर रहा है
वो खुदा भी तुझे बनाकर परेशान होगा
जिसकी पाक मोहब्ब्त को साखी
तू बहुत ही बदनाम कर रहा है।
